शापित अनिका: भाग ५

स्वामी शिवदास अपने पूजा- गृह में शिवलिंग के आगे ध्यान- मुद्रा में थे, परन्तु अचानक उन्होनें चौंककर आंखे खोल दी।


"अनर्थ...." शिवदास जी के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई- "हमें इस घटना का भान तो था परन्तु इतनी शीघ्र.... इसकी तो हमने कल्पना भी नहीं की थी। इस संकट का निवारण तो करना ही होगा। हे महादेव! कृपा करना प्रभो!"

स्वामी शिवदास जी शिवलिंग को नमन कर पूजा कक्ष से बाहर आये अपने शिष्यों को आवाज लगाकर बुलाया।

"शिवानंद.... आदित्य...."

"जी गुरूजी...." शीघ्र ही दो युवा साधुओं ने आकर प्रणाम किया।

"पुत्रों! हमें एक अति- आवश्यक पूजा करनी है। आदित्य तुम शीघ्र ही कुछ अन्य शिष्यों के साथ मिलकर यज्ञ- कुंड तैयार कर हविष्य तथा अन्य सामग्रियों को प्रबंध करो।" स्वामी शिवदास ने आदित्य से कहा।

"जी गुरूजी! अभी प्रबंध करता हूं।" कहकर आदित्य ने प्रस्थान किया।

"शिवानंद.... पुत्र तुम्हें हम एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य सौंप रहे हैं।" शिवदास जी व्याकुलता से बोले- 
"परन्तु पुत्र! यदि तुम इस कार्य में असफल हुये तो हमारे जीवन की सारी साधना व्यर्थ हो जायेगी।"

"आदेश कीजिये गुरूजी! मैं अपने प्राण देकर भी आपका प्रदत्त कार्य पूर्ण करूंगा।" शिवानंद ने कटिबद्ध होकर कहा।

"पुत्र! हम महाशिव को प्रसन्न करने हेतु एक यज्ञ- पाठ कर रहे हैं इसलिये हम चाहते हैं कि तुम भगवान शिव का पंचामृत से स्नान कर यज्ञ पूर्ण होने तक शिवलिंग पर निरंतर मां गंगा के जल से अभिषेक करते रहो। कार्य अत्यंत दुष्कर है पुत्र! परन्तु उतना ही आवश्यक भी।" स्वामी शिवदास चिंतित स्वर में बोले।

"आपके आदेश का अक्षरश: पालन होगा गुरूजी!" शिवानंद ने आश्वासन दिया।

"आयुष्मान भव: पुत्र! हमें तुमसे ऐसी ही आशा थी।" स्वामी शिवदास ने स्नेहपूर्वक आशीष देकर शिवानंद को विदा किया। कुछ ही देर में आदित्य ने यज्ञ- कुंड तैयार होने की सूचना दी तो स्वामी शिवदास यज्ञ- कुंड की ओर बढ़ गये।


* * *



"क्या बकवास कर रही थी तू? मां- बाप ने घर से निकाल दिया!" आशुतोष ने मिशा का कान उमेटा।

"आऊ.... सॉरी भाई.... वो तो कुछ दिन कोचिंग बंक की तो ये पीटने वाली थी इसलिये आपको बकरा बना दिया लेकिन इसमें आपका भी तो फायदा है न!" मिशा ने अपना कान छुड़ाते हुये कहा।

"वो कैसे?" आशुतोष चकराया।

"देखो.... उसके आगे तो तुम पहले ही बेचारे किस्म के आदमी हो इसलिये ऑटोमेटिकली उसके दिल में तुम्हारे लिये सिम्पथी है और अब आगे.... तुम समझ रहे हो न!" मिशा मुस्कुराई।

"तू तो बड़ी कमीनी निकली!" सिड़ मुस्कुराकर बोला। लेकिन उधर आशुतोष के मन में अन्तर्द्वंद छिड़ा हुआ था। बार- बार उसे अपने सपनों की याद आ जाती। अभी वो मिशा से बात ही कर रहा था कि उसकी नजर अनिका पर पड़ी, जो हाथ में दूध का पैकेट लेकर रोड़- क्रॉस कर रही थी। उसने देखा कि सामने से एक तेज रफ्तार ट्रक आ रहा है, जो लगातार अनिका की तरफ बढ़े जा रहा था।

"ओह शिट...." कहते हुये आशुतोष अनिका की तरफ दौड़ा। इतना समय नहीं था कि उसे आवाज लगाई जा सके। उसने तेजी से धक्का देकर अनिका को ट्रक के आगे से हटाया। अनिका तो ट्रक के नीचे आने से बच गई लेकिन आशुतोष ट्रक की चपेट में आ गया। ट्रक की रफ्तार काफी तेज थी, जिसके कारण टक्कर होते ही आशुतोष सीधे रोड़ की दूसरी तरफ जा गिरा।

"भाई...." मिशा और सिड़ की चीख निकल गई। दोनों तेजी से सड़क पार कर आशुतोष के पास पहुंचे। आस- पास लोगों की भीड़ जमा हो गई थी। अनिका तो इस घटना से सुन्न हो गई। उसे समझ ही नहीं आया कि अभी हुआ क्या था?

आशुतोष टक्कर से बेहोश हो चुका था। सड़क पर काफी खून बह चुका था। मिशा और सिड़ आशुतोष को बाकी लोगों की मदद से गाड़ी तक लेकर गये। अनिका और सिड़ आशुतोष के साथ पिछली सीट पर बैठे और मिशा ने गाड़ी तेजी से पास के हॉस्पिटल की तरफ बढ़ा दी।

आशुतोष को आनन- फानन में आई.सी.यू. वार्ड में ले जाया गया। हॉस्पिटल में अफरा- तफरी सी मच गई। वैसे तो डॉक्टर पुलिस केस बता रहे थे, लेकिन जब पता चला कि घायल मि. श्यामसिंह बिष्ट का बड़ा बेटा है तो फौरन इलाज शुरू कर दिया गया। सिड़ ने रास्ते से ही घर पर फोन कर आशुतोष के एक्सीडेंट के बारे में बता दिया था। इस वक्त मिशा आई.सी.यू. के बाहर एक बेंच पर सिर पकड़कर बैठी थी, जबकि सिड़ वार्ड के बाहर बैचेनी से चहलकदमी कर रहा था। अनिका मिशा के पास ही खड़ी थी। कुछ ही देर में डॉक्टर बाहर आये तो तीनों ने उसे जा घेरा।

"देखिये.... केस बहुत क्रिटिकल है। सिर पर मैसिव इंजरीज हैं और पसली भी टूटकर यकृत में जा धंसी है। हाथ की हड्डी भी टूट गई है। हमें फौरन ऑपरेशन करना होगा।" डॉक्टर चिंताग्रस्त होकर बोले।

"तो कीजिये न!" सिड़ व्यग्रभाव से बोला- "आप क्या शुभ मुहूर्त का इंतजार कर रहे हैं?"

"देखिये आप समझ नहीं रहे हैं। हमने ऑपरेशन की सारी तैयारी कर ली है, लेकिन हमें भी कुछ फॉर्मेलिटीज करनी पड़ती हैं। आप ये फॉर्म साइन कर काउंटर पर जमा कर दीजिये। वैसे तो मि. बिष्ट या मिसेज विमला होती तो.... पर खैर.... हम ऑपरेशन शुरू कर देते हैं।" कहते हुये डॉक्टर ने मिशा के हाथ में एक फॉर्म पकड़ाया और फिर से आई.सी.यू. में घुस गये।

"अजीब पागल डॉक्टर है यार! आई.सी.यू. से फॉर्म पकड़ाने बाहर आ गया। किसी नर्स या वार्ड- ब्वॉय को भी तो भेज सकता था!" सिड़ खीजते हुये बोला।


* * *



आशुतोष को ओ.टी में करीब एक घंटा हो चुका था। डॉक्टर अभी तक ऑपरेशन में व्यस्त थे। मिशा और अनिका बाहर बैचेनी से ऑपरेशन खत्म होने का इंतजार कर रहे थे। सिड़ हॉस्पिटल के कैंटीन से चाय लेकर आया तो मिशा उस पर भड़क उठी।

"तेरे दिमाग में इस वक्त भी खाने- पीने का भूत चढ़ा है?" मिशा ने तिरस्कार करते हुये कहा- "वहां अंदर भाई का ऑपरेशन चल रहा है, डॉक्टर बोल रहे हैं कि क्रिटिकल केस है और तू...." कहते- कहते मिशा का गला रूंध गया।

"अब मेरे चाय न पीने से तो वो बचेगा नहीं!" सिड़ ने चाय का एक घूंट भर मुस्कुराते हुये कहा- "चिल यार.... अंदर डॉक्टर अपना काम कर तो रहें हैं न!"

"मैं न तेरा टेंटवा दबा दूंगीं।" मिशा गुर्राई- "तेरे अंदर फीलिंग्स नाम की कोई चीज है भी या नहीं?"

"फीलिंग्स तो भर- भरकर हैं लेकिन पेट का भरना ज्यादा जरूरी है। और तू काहे को इतना टेंशन ले रही है? कुछ नहीं होगा उसे.... अपना भाई तो सुपरहीरो है यार!"

इधर एक तरफ तो इन दोनों की नोंक- झोंक चल रही थी, उधर दूसरी तरफ अनिका अपने ही विचारों में गुम थी। उसे समझ ही नहीं आया कि क्या कोई इतना अच्छा भी हो सकता है कि दूसरे की जान बचाने के लिये खुद मौत के मुंह में कूद पड़े? उसने मिशा से आशुतोष के बारे में सुना था और उसे उससे सहानुभूति थी लेकिन अक्सर इस दौर से गुजरने वाले गलत रास्तों पर चल पड़ते हैं। उसे आशुतोष एक अच्छा इंसान लगा और उसकी फिक्र हो रही थी। वो इन्हीं विचारों में गुम थी कि मिशा के चिल्लाने से उसका ध्यान भंग हुआ।

मि. श्यामसिंह अपनी पत्नी विमला देवी के साथ बदहवास से हॉस्पिटल में आये और मिशा से आशुतोष की तबीयत के बारे में पूछा तो उसका गुस्सा फूट पड़ा।

"आपको क्या फर्क पड़ता है कि वो मरे या जिये? पिछले सत्रह साल से भी तो आप उसके बगैर रह ही रहे हो न!"

"मिशा.... अपने पापा से ऐसे बात करते हैं?" विमला देवी ने मिशा को फटकार लगाई।

"ओह, प्लीज मम्मा.... आपको तो बहुत खुशी हो रही होगी न! आखिर सबकुछ आपकी मर्जी का ही तो हो रहा है! बस डॉक्टर आकर सॉरी बोल दे फिर आपकी तो चांदी ही चांदी है। उसके बाद पूरी प्रॉपर्टी और बिष्ट मैंन्शन पर आपका राज जो हो जायेगा।" मिशा की आंखों से अंगारे बरस रहे थे।

मिशा वो मेरा बेटा है...." मि. श्यामसिंह कातर भाव से बोले।

"ओह, रियली डैड़!" मिशा ने व्यंग्यपूर्वक कहा- "तो पिछले सत्रह साल से ये बाप का प्यार कहां था? जब ग्यारह साल की उम्र में वो बोर्डिंग गये तब ये प्यार कहां था? पिछले चार सालों से वो घर नहीं आये थे, तब आपकी ये चिंता कहां थी? आप न ये घडियाली आंसू मेरे सामने न ही बहाओ तो अच्छा रहेगा।"

"प्लीज.... आप लोग शोर मत मचाइये। ये हॉस्पिटल है कोई फिश- मार्केट नहीं।" एक मोटी अधेड़ उम्र की नर्स ने आकर कहा तो मिशा ने उसे भी आग्नेय नेत्रों से देखा और पैर पटकते हुये रिसेप्शन की तरफ चली गई। अनिका भी उसके पीछे- पीछे गई।

"मिशा.... तुम्हें अपने मां- बाप से ऐसे बात नहीं करनी चाहिये थी।" अनिका मिशा के मि. श्यामसिंह के प्रति मिशा के व्यवहार पर नाराजगी जताई।

"जानती हूं।"मिशा उदास स्वर में बोली- "लेकिन उनको देखकर मुझे भाई के साथ उनकी ज्यादतियां याद आ जाती है। मेरे भाई न बिल्कुल भगवान राम की तरह सीधे- सादे हैं और मां पूरी कैकयी लेकिन अफसोस इस बात का है कि पापा कभी दशरथ नहीं बन पाये।"

"मिशा.... मां- बाप कभी भी बच्चों का बुरा नहीं चाहते लेकिन मां- बाप चाहे गलत भी हों, तो भी हमें उनकी इज्जत करनी चाहिये।" अनिका समझाते हुये बोली- "क्या तुम्हारे भाई भी उनके बारे में ऐसा ही सोचते हैं?"

"नहीं, बल्कि गुस्सा तो तब आता है, जब इनकी वजह से मुझे भाई से डांट खानी पड़ती है।" मिशा ने मुस्कुराने की कोशिश की।

"डोंट वरी.... तुम्हारे भाई को कुछ नहीं होगा।" अनिका ने मिशा का हाथ अपने हाथों में लेते हुये कहा।

"वो तो मैं जानती हूं। अभी तो भाई को मेरे लिये आपकी जैसी एक सुंदर भाभी लानी है।" मिशा ने मुस्कुराकर कहा तो अनिका शरमा गई।


* * *


सिड़ हमेशा की तरह पारिवारिक झगड़े से भाग निकला और कैंटीन की शरण ली। इधर मि. श्यामसिंह आंखों में आंसू लिये बेंच पर बैठ गये। मिशा के बर्ताव ने उन्हें अंदर तक हिला दिया।

"मैं अपने बच्चों की नजरों में कितना गिर चुका हूं विमला?" मि. श्यामसिंह उदास भाव से बोले- "आज मेरी बेटी ही मुझसे सीधे मुंह बात करने को तैयार नहीं है।"

"मिशा के बिहेवियर से क्यूं परेशान हो रहे हो श्याम जी? जल्दी ही जब सच्चाई सामने आयेगी तो इसी मिशा की नजरों में तुम अपने लिये इज्जत देखोगे।" विमला देवी दिलासा देते हुये बोली- "तुम्हें तो खुश होना चाहिये कि हमारे बच्चों के बीच में सौतेलेपन की दीवार नहीं है। तीनों एक- दूसरे को अपनी जान से ज्यादा चाहते हैं।"

"इसीलिये तो इतनी जिल्लत झेलकर भी मैं सिर उठाकर जी रहा हूं। वरना अपने बच्चों की नजरों में अपनी लिये इज्जत न देखने से तो मरना लाख गुना अच्छा है।" मि. श्यामसिंह उदास भाव से मुस्कुराये- "तुमने भी मुझे कभी भी पुष्पा की कमी महसूस नहीं होने दी और अपने बच्चों को दिये तुम्हारे संस्कार ही हैं, जिन्हें देखकर ये गालियां भी मुझे मीठी लगती हैं।"

"फिक्र मत करो श्याम जी! जल्दी ही सब- कुछ ठीक हो जायेगा।" विमला देवी ने सांत्वना देते हुये कहा।

"उम्मीद तो यही है...." मि. श्यामसिंह ने गहरी सांस भरी। 

तभी ओ.टी. के बाहर जल रहा बल्ब बुझ गया, जो ऑपरेशन खत्म होने का संकेत था। जैसे ही डॉक्टर ओ.टी. से निकले सब लोग लपककर उनके पास जा पहुंचे।

"डॉक्टर.... अब मेरा बेटा कैसा है?" श्यामसिंह ने उत्सुक्तापूर्वक पूछा।

"चिंता की कोई बात नहीं है मि. बिष्ट। ऑपरेशन सक्सेसफुल रहा।" डॉक्टर ने कहा तो सबके चेहरे पर राहत के भाव आये। डॉक्टर ने आगे कहा- "उनके रिब्स और हेड़ में गहरी चोट आई है इसलिये पूरी तरह ठीक होने में करीब महीनाभर लगेगा।"

"थैंक्यू डॉक्टर.... थैंक्यू वैरी मच...." श्यामसिंह ने कृतज्ञता पूर्वक कहा।

"इसमें थैंक्स की कोई बात नहीं मि. बिष्ट, ये तो मेरी ड्यूटी है। अभी तो एनस्थीसिया का इफैक्ट है लेकिन दो घंटे में उन्हें दूसरे वार्ड में शिफ्ट कर दिया जायेगा, तब आप उनसे मिल सकते हैं।" कहकर डॉक्टर मुस्कुराते हुये आगे बढ़ गये। पीछे रहे चारों लोग भगवान का शुक्रिया करने लगे।

* * *

उधर सूर्यास्त के साथ ही स्वामी शिवदास जी ने हवन- कुंड में अंतिम आहुति ड़ाली और ईश्वर को प्रणाम कर शिव- मंदिर की ओर बढ़ गये, जहां शिवानंद शिवलिंग का जलाभिषेक कर रहे थे।

"पुत्र शिवानंद! हमारा यज्ञ पूर्ण हुआ।" शिवलिंग को प्रणाम कर स्वामी शिवदास प्रसन्नतापूर्वक बोले- "तुम्हारी कर्तव्य- निष्ठा और भक्ति- भाव की सहायता से आज हमारा अभीष्ट कार्य सिद्ध हुआ और महाकाल ने हमारे एक प्रिय- बंधु को अकाल- मृत्यु से बचा लिया।"

"ये तो केवल आपके परिश्रम और आशीर्वाद का प्रताप है गुरूजी!" शिवानंद ने विनम्रतापूर्वक कहा- 

"अन्यथा मुझ जैसे तुच्छ- प्राणी की भक्ति में वो शक्ति कहां जो ईश्वर को बाध्य कर सके।"

"भक्ति और विनम्रता ही वो दो गुण हैं जिनके वशीभूत होकर भगवान को भक्त के बंधन में बंधना ही पड़ता है पुत्र!" शिवदास जी सप्रेम बोले- "और ये दोनो ही गुण तुममें विद्यमान हैं। हम तुमसे अति प्रसन्न हैं इसलिये आज हम तुम्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित करते हैं। समय आने पर हम तुम्हें अपने गुरू महाराज से प्राप्त वो गुप्त- विद्याएं भी सिखायेंगें जो आज तक हमने किसी को भी नहीं दी।"

"मैं अनुग्रहित हुआ गुरूजी!" शिवानंद की आंखों से आंसू झड़ने लगे।

"परन्तु याद रहे पुत्र इन शक्तियों का प्रयोग केवल परहित और धर्म रक्षार्थ ही किया जाना चाहिये अन्यथा ये विद्या साधक का अनिष्ट ही करती हैं।" स्वामी शिवदास ने चेतावनी दी।

"मुझे सदैव स्मरण रहेगा गुरूजी!" शिवानंद ने आश्वासन दिया।

"उचित है पुत्र! अब हम संध्या- पूजा से निवृत होकर आते हैं। तुम हमारे देहरादून प्रयाण की व्यवस्था करो और तुम भी हमारे साथ चलोगे।" कहकर शिवदास जी गंगातट की ओर बढ़ चले।

* * * 


आशुतोष को होश आने पर उसे प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। डॉक्टर ने उससे मिलने की इजाजत तो दे दी लेकिन इस शर्त पर कि वो जल्दी ही बाहर आ जायेंगें और फिर उसे आराम करने देंगें। जैसे ही सबने कमरे में कदम रखा सब चौंक गये। मिशा और सिड़ की आंखों से पानी बहने लगा। मि. और मिसेज श्यामसिंह भी आशुतोष को देखकर सकते में आ गये और अनिका.... वो तो जड़वत एकटक आशुतोष को देख रही थी। आशुतोष के पूरे सिर और पेट पर पट्टी बंधी थी। बांये हाथ पर भी प्लास्टर चढ़ा था।

"अब कैसी तबीयत है आपकी?" अनिका ने पूछा तो आशुतोष की नजरें उसके चेहरे पर थम सी गईं।

"मैं ठीक हूं, बस थोड़ी सी खरोंचे आईं है।" आशुतोष ने मुस्कुराकर कहा।

"वाऊ.... आपकी बंदर सी शक्ल से तो ये लंगूर का कॉस्ट्यूम आप पर ज्यादा सूट कर रहा है।" मिशा रूलाई रोकते हुये मुस्कुराई।

"मुझे भी लगा कि लगा कि ऊपरवाले ने गलत स्पीशीज में पैदा कर दिया तो सोचा क्यूं न खुद ही चेंज कर लूं।" आशुतोष भी मुस्कुराया।

"क्या यार भाई आप भी न! आपको कुछ हो जाता तो? वैसे तो एक हिसाब से ठीक ही हुआ कि अब कुछ दिन स्कूल नहीं जाना पड़ेगा।" सिड़ मुस्कुराते हुये बोला तो सबकी नजरें उस पर आ टिकीं।

"व्हट? अब भाई को इस हाल में छोड़कर मैं स्कूल नहीं जाने वाला। बीमार की तीमारदारी भी तो करनी है।" सिड़ ने सबको घूरते हुये हड़बड़ाहट में कहा तो सबके होंठों पर फीकी मुस्कुराहट तैर गई।

"लगता है अब ग्यारहवीं में तुझे भी बोर्डिंग में डालना पड़ेगा।" आशुतोष मुस्कुराया।

"जल्दी से ठीक होकर घर चलो। तुम्हारे लिये एक सरप्राइज है।" श्यामसिंह आशुतोष का हाथ दबाकर बोले आशुतोष की आंखों में आंसू छलक आये।

"हां, पापा आपको जायदाद से बेदखल कर रहे हैं।" मिशा के कहने पर सिड़ और आशुतोष ठहाका मारकर हंस पड़े लेकिन तभी हंसते- हंसते आशुतोष की कराह निकल गई।

"क्या हुआ? आप ठीक हैं?" अनिका ने घबराकर पूछा।

"हां, मैं ठीक हूं।" आशुतोष मुस्कुराकर बोला- "यार सिड़! अब तू स्कूल नहीं जा रहा तो मेरी हेल्प करने यही रूक जा। यार! इन पट्टियों के नीचे बड़ी खुजली होती है।"

"व्हट.... इससे अच्छा तो मैं स्कूल में क्लास के बाहर हाथ ऊपर करके खड़ा रह लूंगा।" सिड़ के जवाब में एक बार फिर हंसी का फव्वारा छूट पड़ा।

"आई एम सॉरी.... मेरी वजह से आपको...." अनिका कुछ कह रही थी तो आशुतोष बीच में बोल पड़ा- "अरे नहीं अनिका जी! वो तो हिप्पोपोटेमस की कसम ली थी कि जिसकी जान बचानी मुमकिन हो बचायेंगें और मैं अपना प्रॉमिस कभी नहीं तोड़ता।"

आशुतोष के जवाब में सभी मुस्कुरा दिये, लेकिन अनिका सम्मान भरी अनुरक्त नजरों से आशुतोष को देखने लगी। तभी अनिका का मोबाइल घनघना उठा और वह "एक्सक्यूज मी!" कहकर वार्ड से बाहर निकल गई।

* * *

क्रमशः


     ---अव्यक्त



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4 Comments

BhaRti YaDav ✍️

29-Jul-2021 04:36 PM

Nice

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Pihu jaiswal

20-Jul-2021 04:13 PM

Ossam part 👌👌👍♥️ bahut bahut achchi h very inserting

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🤫

19-Jul-2021 09:22 PM

बहुत अच्छी रचना.....

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